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क्या कोई यह बता सकता है कि आखिर दिल्ली से सटे गाजियाबाद शहर यानी एनसीआर इलाके में बिजली की इतनी किल्लत क्यों हैं। यहां यानी गाजियाबाद में तय कटौती समय के अलावा भी अघोषित कटौती चलती रहती है। यहां के लगभग हर घर में इनवर्टर पाया ही जाता है।
आखिर इसकी वजह क्या है वो तब जबकि पिछले महीने लगभग सभी अखबारों में यूपी बिजली विभाग का फुल पेज विज्ञापन भी छपा था जिसमें दावा किया गया था कि राज्य में सरप्लस बिजली का उत्पादन होने लगा है। अगर वाकई हो रहा है तो आखिर बिजली जा कहां रही है। या फिर वह महज एक विज्ञापन था।
क्या वाकई जनता की याददाश्त कमजोर होती है जो ऐसे लोगों को चुनकर लोकतंत्र के मंदिरों में भेज देती है जो अपने घरों में तो एसी लगवाए रहते हैं और एसी कारों में घूमते हैं। और चुनावी बादल घिरते ही मूलभूत सुविधाओं और बिजली के लिए टर्राने लगते हैं। पता नहीं ऐसे लोगों को वोट ही क्यों दिया जाता है जो अपना वादा पूरा नहीं करते हैं।
शायद इसीलिए मुझे अपने एक मित्र बात अच्छी लगती है जो वैसे तो लोहिया जी का वाक्य है कि जिंदा कौमें पांच साल तक इंतजार नहीं करती हैं।
तो क्या हम जिंदा कौमें नहीं हैं।
हालातों को देखकर तो यही लगता है। मैं यहां पर न तो किसी सरकार की बुराई करना चाह रहा हूं और न ही किसी की बड़ाई। देश के सबसे राज्य की दुर्दशा देखकर यह सब शब्दों में तब्दील होकर लिखा गए हैं। ऐसा राज्य जहां से देश के पहले प्रधानमंत्री चुने गए और सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री भी यहीं निकले। सबसे ज्यादा सांसद भी यहीं पाए जाते हैं। विधायिका की तो बात ही क्या करें। चाहे वर्तमान राज्य सरकार हो या पूर्ववर्ती सभी ने जनता को चूना लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राज्य के हालात किसी से छुपे नहीं हैं और यहां के नेताओं के भी। पर शायद लोकतंत्र की यही मजबूरी है।
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