सज़ा का मज़ा (संक्रामक बीमारी)
आखिरकार रुचिका के साथ छेड़छाड़ करने तथा उसे आत्महत्या के लिए उकसाने वाले आला पुलिस अफसर एसपीएस राठौर (रिटायर्ड) को अदालत ने गुनाहगार मान ही लिया। इसी के साथ यह भी जाहिर को गया कि भले ही हमारे देश के कानून रूपी भगवान के घर में देर है लेकिन अंधेर नहीं।
आरोपी एसपीएस राठौर को अपनी मुस्कुराहट काफी महंगी पड़ी। पिछली बार निचली अदालत ने जब उन्हें सिर्फ छह महीने की सजा सुनाई थी और जमानत पर छोड़ दिया था, तो वो अदालत से बाहर आते वक्त अपनी खीसें निपोरे हुए थे। नतीजा यह कि लोगों में आक्रोश बढ़ गया, क्योंकि एक तो नाम की सजा उस पर ऐसी हरकत। मानों सबको चिढ़ा रहे हों कि देख लो मेरा कोई क्या बिगाड़ेगा।
खैर उच्च अदालत ने मामले को सही अंजाम तक पहुंचा दिया। लेकिन अब एक चिंता और है और वह है कि क्या वाकई राठौर जेल तक पहुंचेंगे। या फिर वो भी ‘बीमार’ हो जाएंगे। क्योंकि हमारे देश में बीमारी अदालत द्वारा सजा मुकर्रर करने के बाद बहुत जल्दी पकड़ती है।
पिछले कई ऐसे उदाहरण हमारे सामने हैं, जहां नेताओं ओर बाहुबलियों को सजा सुनते ही बीमारी ने जकड़ लिया। उत्तर प्रदेश और बिहार में तो कई ऐसे माननीय और बाहुबली आज भी सरकारी दामादी काट रहे हैं।
खैर इस पर तो कुछ कहा नहीं जा सकता है, क्योंकि यह सुविधा तो तंत्र का हिस्सा बन चुकी है। अव्वल तो किसी ताकतवर पर मामला दर्ज नहीं होता है, और अगर ऐसा हो भी गया तो बरसों बरस सुनावाई चलती है। फिर जाकर यदि सजा हुई तो बीमारी तुरंत जकड़ती है।
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